छात्रों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति और गलाकाट प्रतिस्पर्धा |
Rising trend of suicide and cutthroat competition among aspirants
परिचय | Introduction
सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थी बाक़ी परीक्षा के अभ्यर्थियों के अपेक्षा ज्यादा परिपक्व माने जाते हैं लेकिन आत्महत्या के हालिया आंकड़े इसे धता बतातें हैं। इससे यह साबित होता है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी को लेकर अत्यधिक मानसिक दबाव के कारण देश के प्रमुख कोचिंग हब बने राजस्थान के कोटा में तो अक्सर छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। अब नामी-गिरामी इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों व सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों में भी छात्रों द्वारा आत्महत्या किए जाने के बढ़ते मामले समाज को झकझोरने लगे हैं। छात्रों में आत्महत्या की यह बढ़ती प्रवृत्ति अब सरकार के साथ-साथ समाज को भी गंभीर चिंतन-मनन के लिए विवश करने हेतु पर्याप्त है।
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सांख्यिकीय विश्लेषण | Statistical Analysis
युवा आत्महत्या दरों पर वर्तमान आंकड़े बहुत चौकाने वाले नहीं हैं अपितु हमेशा की तरह निराशाजनक ही है। आज के अभ्यार्थी प्रतिस्पर्धा और मानसिक स्वास्थ्य के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहे, गलाकाट प्रतिस्पर्धा की भागादौड़ी में जीवन जीना भूल गए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देखें तो जहां 2020 में देशभर में कुल 12526 छात्रों ने आत्महत्या की, वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 13089 हो गया। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के आंकड़े भारत में आत्महत्या की गंभीर स्थिति को उजागर करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जो दुनिया में सबसे अधिक है।
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मानसिक प्रभाव | Mental Effects
एक अभ्यार्थी के माता पिता किन परिस्थितियों में बड़े शहरों में कोचिंग सेंटर में पढ़ने के लिए उसे जीवननिर्वाह हेतु पैसों का बंदोबस्त करते हुए ही अपने बच्चे से कुछ अच्छा और बड़ा करने की उम्मीद लगा लेते है। इससे होता ये है के बच्चे के मन में मानसिक दबाव उत्पन्न हो जाता है। कठिन परिश्रम के पश्चात अगर असफलता हाथ लगती है तो अभ्यार्थी उच्च अपेक्षाओं का मानसिक शुल्क न निभा पाने की वजह से निराश हो कर कुछ गलत कदम उठा लेता है।ब ढ़ती प्रतिस्पर्धी युवाओं में तनाव का मुख्य कारण है।
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सामाजिक दबाव | Social Pressure
समाज की भूमिका प्रतिस्पर्धी मानदंडों को आकार देने में मुख्य भूमिका निभाता है। अगर "शर्मा जी का बेटा अगर I.A.S. ऑफिसर बन रहा तो मेरा बेटा या बेटी भी बनने चाहिए"। ऐसी अवधारणा के चलते ही बच्चों के मर्ज़ी ने बिना उनको समाज के तथाकथित सफलता के पैमाने में जबरन प्रतिभागी बना दिए जाते हैं। इन सामाजिक उदाहरणों से पता चलता है कि अभिभावक सामाजिक दबाव में अपने बच्चों पर नाजायज दबाव डाल कर कहीं ना कहीं गलत कर रहे हैं।
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प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का प्रभाव | Influence of Technology & Social Media
5G की नई नई दुनिया में हर ज़रूरी व गैर–ज़रूरी चीज़ें कुछ ही मिनटों में उपलब्ध हैं। आजकल के सोशल मीडिया ट्रेंड्स में दिखावा सबसे अहम हो गया है, सफलता पा लेने के बाद हर छोटी से छोटी जीवनशैली में घटित पलों को अतिश्योक्ति से लबरेज कर के जानकारी सामूहिक साझा करना आम बात हो गई है। इससे सामाजिक तुलना बहुतायत मात्रा में बढ़ी है, सबको एक अच्छी जिंदगी चाहिए और उसके लिए प्रयासरत भी रहना चाहिए लेकिन सोशल मीडिया पर दिखाई चीजों से तुलना करना हनीकरण हो सकता है। प्रशासनिक सेवा में आने के बाद अपनी चकाचौंध वाली जिंदगी साझा करने की अति करने से जाने अनजाने उस अभ्यार्थी को नकारात्मक विचार आने की संभावना बढ़ जाएगी जो दिनरात मेहनत कर के भी असफल ही रहा हो।
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निवारक उपाय और समर्थन | Preventive Measures and Support
- छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और संसाधनों जैसे कि परामर्श सेवाएँ, सहायता समूह और मनोरोग सेवाएँ उपलब्ध कराने से आत्महत्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है।
- साथ ही, स्कूलों और विश्वविद्यालयों को शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित करना चाहिए।
- मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के बारे में खुली चर्चाओं के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मदद मांगने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- व्यक्तित्व विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाकर, शैक्षणिक संस्थान एक सहायक और समावेशी वातावरण बना सकते हैं जो छात्रों को अकादमिक और भावनात्मक रूप से आगे बढ़ने में मदद करता है, और आत्महत्याओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- खेल तनाव और भावनाओं के लिए एक सकारात्मक आउटलेट प्रदान करके, साथ ही आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को बढ़ाकर शैक्षिक केंद्रों में आत्महत्याओं को रोकने में भूमिका निभा सकते हैं।
- गरीबी, बेघर होना और बेरोजगारी जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों को छात्रों की समग्र भलाई में सुधार करने और तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने के लिए संबोधित किया जाना चाहिए।
- सकारात्मक संबंध बनाना: छात्रों को सकारात्मक संबंध और कनेक्शन बनाने के लिए प्रोत्साहित करना, संबंध परामर्श सेवाएँ प्रदान करना और छात्रों को मदद के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित करना आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है। पारिवारिक सहायता: छात्रों को उनके परिवारों से सहायता प्रदान करना आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है। इसमें परिवारों के लिए सहायता और संसाधन प्रदान करना और छात्रों को अपने परिवारों के साथ संपर्क बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
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सरकार द्वारा पहल | Initiatives by the Government
निष्कर्ष | Conclusion
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